धर्म एवं आध्यात्मिकता के आलोक में मूल्य शिक्षा
Abstract
धर्मजीवन का अभिन्न अंग है। मानव चिन्तन के विभिन्न आयाम भी धर्म से ही निकलते हैं। यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने देश की धर्म एवं संस्कृति के विकास के विषय में ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। इसी स्वाभाविक प्रक्रिया का परिणाम भारतीय धार्मिक चेतना एवं आध्याम्किता के परिशीलन में मूल्य आधारित शिक्षा का परिशीलन अनेक रूपों में हमारे आस-पास के पर्यावरण में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। धर्म की वास्तविक परिप्रेक्ष्य उसके मनोविज्ञान का, उसके बाह्य एवं आन्तरिक धरातल का ज्ञान न होना है। धर्म आदिम या आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास है। भय एवं आश्चर्य से पैदा हुआ धर्म आज सम्पूर्ण मानव जगत में व्याप्त है। धर्म के समग्र एवं वास्तविक परिप्रेक्ष्य का ज्ञान हमें मूल्य आधारित शिक्षा से ही प्राप्त होता है।
अध्यात्मक व्यक्ति के आत्म स्वरूप की अनुभूति कराता है, अहंकार का विसर्जन भी करता है। यह सहज भाव से जीवन जीना भी सिखाता है। सम्पूर्ण प्रकृति सहज है, मात्र व्यक्ति ही असहज है। मानव जैसा है वैसा नहीं दिखता और जैसा दिखता है वैसा नहीं। अन्दर और बाहर अलग-अलग स्वरूप है। बाह्य एवं आन्तरिक भेद ही असहजता का कारक है जहाँ अहंकार है वहीं भेद है। इसी अहंकार को सहजता में विलय का माध्य है मूल्य शिक्षा।