लखनऊ जिले के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका पर एक जांच
Abstract
यह पत्रा भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का विश्लेषण करने का प्रयास करता है और महिला सशक्तिकरण के तरीकों और योजनाओं पर प्रकाश डालता है। सशक्तिकरण सामाजिक विकास की मुख्य प्रक्रिया है, जोमहिलाओं को ग्रामीण समुदायों के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सतत विकास में भाग लेने में सक्षम बनाती है।आज महिलाओं का सशक्तिकरण 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में से एक बन गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप से महिला सशक्तिकरण अभी भी वास्तविकता का एक भ्रम है। महिलाओं का सशक्तिकरण अनिवार्य रूप से समाज मेंपारंपरिक रूप से वंचित महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के उत्थान की प्रक्रिया है। हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि कैसे महिलाएं विभिन्न सामाजिक बुराइयों का शिकार बनती है। स्वंय सहायता समूह एक ऐसा माध्यम है जिसकी सहायता से महिलाओं ने एक नई पहचान बनाई है। इसके साथ ही स्वंय सहायता समूह ने समूह की महिलाओं को अन्य महिलाओं के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत करने तथा एक दूसरे की मदद करते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने मे विशेष योगदान दिया है। महिलाओं की स्थिति देश के विकास को प्रदर्शित करती है। विश्व काकोई भी देश महिलाओं को हासिए पर रख कर अपना आर्थिक विकास नहीकर सकता है। महिलाओं को देश के विकास की मुख्यधारा मे जोडना हीहोगा। इन्हें सशक्त बनाने के लिए उन्हें निणर्य सक्षम बनाना होगा। सामाजिक, आर्थिक, राजनीति और स्वयं के जीवन मे निणर्य लेने की क्षमता ही सशक्तिकरण है। सयंुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च 1975 से अन्तर्राष्ट्रीय महिलादिवस की शुरूआत की गई तब से विश्व मे महिला सशक्तिकरण एक जागरूकता अभियान बन गया हैं। इसके लिए राष्ट्रीय, स्थानीय स्तर परविभिन्न प्रयास भी किए गए। महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक रूप से सुदृढबनाने मे स्वयं सहायता समुहों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। देश मे लगभग60 लाख स्वयं सहायता समुहों से 6.7 करोड महिलाएं जुडी हुई हैं यह अध्ययन पुर्व के अध्ययनोें को नवीनपरिदृश्य मे देखने का प्रयास है। इस शोध पत्र मे मुख्यत महिला सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समुहों की भूमिका को प्रस्तुत किया गया है।