‘‘सा संस्कृति : प्रथमा-विश्ववारा’’

  • रमेश प्रताप सिंह असि० प्रो०-प्राचीन इतिहास विभाग का० सु0 साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अयोध्या।
Keywords: संस्कृति, शोभन परिधान, विश्ववारा, अविच्छन्न, सहस्त्रयोजन, श्रद्धेय, अंगीकार, सार्वभौमिकता, उदात्त, पार्थक्य।

Abstract

भारतीय संस्कृति वैश्विक धरा पर एक ऐसी संस्कृति का नेतृत्व करती है, जो मानवता की रक्षा
के लिए प्राणियों को मनुष्य बनाने की क्षमता रखती है। एक ऐसा उच्च स्तरीय विचार जिससे व्यक्ति
स्वयं के भीतर संतोष एवं हर्ष की अनुभूति को अंतःमन के भीतर अनुभव करते हुए सम्पूर्ण जीवन का
निर्वहन कर सके। भारतीय संस्कृति इस धरा के तत्व ज्ञान में रची बसी है। एक ऐसा आदर्शवाद जो
सामूहिक जीवन में विश्वास, सेवा, स्नेह, आत्मीयता, भावना, सहिष्णुता एवं सामाजिक न्याय का परिदृश्य
उत्पन्न करना है। यही आदर्श भारतीय संस्कृति के शिक्षण की मूलधारा के रुप में भारतीय अंतःमन में
प्रवाहित हा े रही है।

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Published
2024-02-06
How to Cite
सिंहर. प. (2024). ‘‘सा संस्कृति : प्रथमा-विश्ववारा’’. Humanities and Development, 18(02), 117-120. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.162