भारतीय समाज में वृद्धजन

  • महेन्द्र प्रताप तिवारी असि0 प्रोफेसर एवं विभागाघ्यक्ष (समाजाषास्त्र) बजरंग महाविद्यालय कुण्डा, प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेष
Keywords: जीवन की सांध्यबले ा, आधुनिकीकरण, लौकिकीकरण, पश्चिमीकरण, प्रजननमूलक परिवार, अकेलापन, अवसाद, उपभाक्े तावादी समाज, समायाजे न आदि ।

Abstract

वृद्धावस्था विविध प्रकार के दुःखों की सुग्राह्य अवस्था है। सामाजिक, आर्थिक, मानसिक आदि
समस्याओं से जीवन की सांध्यबेला अनके दुःखां के मकड़जाल में उलझता जाता है। आधुनिकता
अविवेकी दौड़ में समाज और परिवार में वृद्धजनां े के प्रति मल्ू यात्मक दृष्टिकांण्े ा मं े अवनमन हुआ है।
आज की युवा पीढ़ी और वृद्धजनां के बीच स्वस्थ्य अन्तःक्रिया का लोप होता जा रहा है । वृद्धजनां े में
लचीलेपन का अभाव तथा युवाआें में परपं रागत मूल्यां के प्रति विमुखता के कारण दोनां में समायोजन
दुःसाध्य हाते ा जा रहा है। संतुलित संस्कारां के निवेश के अभाव में युवा पीढ़ी वृद्धजनां के साथ सहज
सकारात्मक व्यवहार नहीं कर रही है। नई पीढी़ द्वारा स्वय ं के प्रजननमूलक परिवार पर ही केन्द्रित हाने े
से वृद्धजन दीन-हीन और अवसादग्रस्त हाके र विविध प्रकार के दुःखां को झले ने को मजबरू है।ं आज
वृद्धजनां की गिरती हुई प्रस्थिति और भूमिका के कारण समाज एवं परिवार में उनकी प्रतिष्ठा एव ं
सम्मान में अवनमन हो रहा है। संयुक्त परिवार के विघटन के कारण वृद्धजनों की सत्ता का अवमूल्यन
एवं विघटन हुआ है । संतति द्वारा वृद्ध माता-पिता का तिरस्कार सामान्य हो गया है । जहाँ एक ओर
माता-पिता अपनी संतानां े के लालन-पालन में किसी भार का अनुभव नही ं करते हैं, वहीं युवा पीढ़ी
वृद्धजनो के लालन-पालन को आवाछं नीय भार समझती है। युवाआें में इस बात का विस्मरण हा े गया
है कि एक दिन उनको भी वृद्धावस्था की समस्याओं के दुष्चक्र से गुजरना होगा। वस्तुतः वृद्धावस्था का
यह दुष्चक्र किसी भी समाज के लिए दुःखदायी है।

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Published
2023-12-30
How to Cite
तिवारीम. प. (2023). भारतीय समाज में वृद्धजन. Humanities and Development, 18(02), 43-48. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.142