‘‘वृद्धों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के कारण एवं समाधान’’
Abstract
हाल के दशकों में जहां एक ओर भारत में वृद्धो की जनसंख्या बढ़ी है वहीं दूसरे ओर नए
प्रकार के मूल्य एव ं सम्बन्धां के प्रतिमान उभर रहे हैं। समय के साथ-साथ मानव प्रगति पथ पर बढ़ता
जा रहा है। कहा जाता है परिवर्तन प्रकृति का नियम है परंतु मानव अपनी बौद्धिक क्षमता के सहारे से
अनेक परिवर्तन करता आ रहा है। नित नयी सुविधाएं जुटाना उसका लक्ष्य रहता है और उसकी यह
लालसा उन्नति का कारण बनती है। आज मानव उन्नति के उस शिखर पर पहुंच चुका है जहां से
विकास की गति को पंख लग गए हैं। विकास की गति अधिक तीव्र हा े गई है शिक्षा का प्रचार प्रसार
तेजी से हो रहा है, शिक्षा से प्राप्त ज्ञान के कारण मानव का रहन-सहन, खान-पान एवं सोच में
बदलाव आ रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति आधुनिक सुविधाआें से युक्त जीवन जीना चाहता ह,ै अधिक से अधिक
सुविधाएं जुटानें में लग गया है इसी प्रतिद्वन्दिता ने उसके सुख, चैन, शांति को छीन लिया है। उसकी
सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। इसी के कारण आज का युवा परम्परागत रूढ़ियों मान्यताओं को
तोड़ डालना चाहता है वह स्वतंत्र होकर जीना चाहता है युवा की यही सोच बुजुर्गों को आहत करती
है। आज के बुजुर्ग आज के अचानक आए परिवर्तनां को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें अपन े समय
के जीवन मूल्य और आदर्श ही अच्छे लगते हैं। अतः वह इसके लिए नए जमानें और नई पीढ़ी को
दोषी मानता है। इसलिए नई पीढ़ी उनकी सोच को नकार देती है और पुरानी पीढ़ी से दूरियां बनाने
लगती है, परिवार में सामंजस्य का अभाव उत्पन्न हाने े लगता है जो घर में विद्यमान बुजुर्गां के लिए
दुखदायी हाते ा है। वर्तमान में वृद्धां की हालत दयनीय हो गई है यह चिंता का विषय है।