’’भारतीय समाज में पुरूष घरेलू हिंसा का अध्ययन’’
Abstract
किसी भी देश के नागरिकां े की जब चर्चा की जाती है तो शब्द से उभय रूप में महिला और
पुरूष दाने ां का बोध होता है। किसी समाज की प्राथमिक ईकाई परिवार मानी जाती है और परिवार को
चलाने में महिला और पुरूष की भि मका बराबर की हाते ी ह।ै वे गाडी के उस दा े पहिए के समान होते
है, जिसके बराबर न होने पर गाड़ी सीधी दिशा मे आगे नही बढ़ सकती है। बात जब मानव अधिकारों
की की जाती है तो बर्बस ही महिला व पुरूष समान अधिकार प्राप्त माने जाते है,ं लेकिन जब बात
भारत वर्ष की, की जाती है तब अधिकार प्राप्त नारी का एक चेहरा उभरकर सामने आता है। वजह
साफ है मनुस्मृति में भारतीय नारी को शक्ति स्वरूप समझा जाता था। वर्तमान समय में भी नवरात्रि के
समय कन्या पूजन इसी तरफ संकेत करता है ’मनुस्मृति में एक स्थान पर उल्लेख भी आया हैं। ’’यत्र
नायस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’ अर्थात् जहा ं नारियो ं की पजू ा होती है वहा ं देवताओ ं का निवास होता
है।