मेघदूतम् तथा भृङ्गदूतम् का समीक्षात्मक अध्ययन
Abstract
कविकुलगुरु कालिदास ने अपनी अलौकिक कृति से नवीन मानदण्ड को प्रस्तुत किया है।
महाकवि ने ऋतुसंहार में देश का, धरती का और ऋतुआं े के आवर्तन-विवर्तन के साथ परिवर्तित होती
छवि को प्रदर्शित करने वाला पहला खण्डकाव्य को उद्धृत किया, ता े मेघदूत के द्वारा उन्हांने े ऐसी
अनूठी कृति सहृदयों के समक्ष रखी जो अपनी रचना काल से लेकर आज तक इनकी सराहना होती
रही है तथा जिससे संदश्े ाकाव्य या दतू काव्य की एक अत्यन्त समृद्ध परम्परा का विकास उद्भव हुआ।
लगभग सौ श्लोकां की एक छाटे ी-सी रचना एक सुदीर्घ काव्य परम्परा की प्रवर्तक या उपजीव्य बन
जाये, ऐसा संस्कृत साहित्य में कम ही होता है।
विषयवस्तु- मेघदूत की विषयवस्तु कवि ने विरही यक्ष के मुख से अलकापुरी के मार्ग तथा अलका के
वर्णन द्वारा प्रकृति का सुन्दर और सरस मनोहारी दृश्य को वर्णित किया है।1 मेघदूत दो खण्ड में
है-पूर्वमेघ तथा उत्तरमेघ। यद्यपि इस खण्डकाव्य में कथानक का अभाव ही दिखाई दते ा है तथापि
केवल पहले पद्य में बताया गया है कि कोई यक्ष था, जो अपने कर्त्तव्य में प्रमाद कर बैठा और इसके
कारण उसे उसके स्वामी कुबेर ने एक वर्ष के लिए देश से निष्कासित कर दिया। तब उस यक्ष ने
रामगिरि के आश्रमों में निर्वासन के दिन को व्यतीत किया था। जिसका वर्णन महाकवि कालिदास ने
मेघदूत के पूर्वमेघ में बड़े मार्मिक रूप से वर्णित करते हुए कह रहे हैं-