73वें एवं 74वें संविधान संशोधन में अनुसूचित जाति की महिलाओं की स्थिति
Abstract
भारतीय समाज में महिलाओं की प्रस्थिति में वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक उतार-चढ़ाव दृष्टिगत होता है, हिन्दू जीवन दर्शन में महिलाओं को सभ्यता का स्रोत, संस्कृति निर्माता, जीवन दायिनी भी माना जाता रहा है। किन्तु व्यक्तिगत रुप से वैदिक काल को छोड़कर महिलाओं को निरन्तर संघर्ष करना पड़ा है। महिलाओं को सुख सम्पत्ति ज्ञान एवं शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है। लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती का भी प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को जहाँ अद्धांगिनी के रुप में सम्मान प्राप्त है जिसके बिना पुरुषों के किसी भी कर्तव्यों की पूर्ति सम्भव नहीं है। उत्तर वैदिक काल से समाज में सामाजिक व्यवस्था रुढ़ियों में जकड़ी हुई दिखाई पड़ती है। वर्ण व्यवस्था क्रम में जहाँ उच्च, निम्न की भावना का विकास हुआ, आधुनिक काल आते-आते उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग की क्रमबद्धता दिखाई पड़ने लगी। वर्ण एवं जाति की क्रमबद्धता में भी स्त्रियाँ हमेशा निम्न पाय-दान पर बनी रहीं। यदि कहीं समय से पूर्ण ही पंचायत भंग हो जाय तो उस ग्राम पंचायत में छः माह के अन्दर नवीन निर्वाचन करने होंगे। पदों का आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिलआों के लिए निश्चत है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल पदों में 30प्रतिशत महिलाओं के लिए सुरक्षित है। संविधान संशोधन में पंचायत के कार्यों एवं शक्तियों का भी उल्लेख किया गया है। ये संविधान की दसवीं सूची में रखे गये हैं।