अदम गोंडवी की रचनाओं में स्त्री चेतना

  • चंद्र देव सिंह विशेन ’शोधछात्र-,हिंदी का.सु.साकेत पी.जी.,अयोध्या
  • डॉ0 अनुराग मिश्र शोध पर्यवेक्षक का.सु.साकेत पी.जी.,अयोध्या

Abstract

शोध सार-किसी भी समय व समाज की सही दशा ज्ञात करनी हो तो उस समय व समाज की स्त्रियों की स्थिति पर विचार करना होगा। प्रश्न यह है कि स्त्रियों की दशा पर विचार करने के लिए क्या स्त्रियों द्वारा लिखित साहित्य पर ही विचार किया जाएगा? या महिला रचनाकारों द्वारा महिलागाथा को ही स्त्री विमर्श माना जाएगा। महिलाएं भी समाज का अंग है समाज में स्त्री पुरुष दोनों का सहजीवन है। पुरुष रचनाकारों द्वारा भी अपनी रचनाओं में ऐसी महिला चरित्रों को प्रमुखता दी गई है जो अपनी स्वतंत्रता, शोषण, गरीबी, अशिक्षा, असमानता, अस्तित्व आदि के लिए संघर्षरत रही हैं। महिला लेखन केवल महिला से नहीं बल्कि समग्र समाज से जुड़ा हुआ है इसलिए समाज में रहने वाला हर व्यक्ति जो महिलाओं के संघर्ष, स्वतंत्रता और अधिकार चेतना को सशक्त बनाने हेतु उसे स्वर दे।उसे स्त्री विमर्श के दायरे में रखा जाना चाहिए। चित्रा मुद्गल ने तो यहां तक कहा है कि ‘मर्दों ने स्त्री विमर्श को ज्यादा ठीक से समझा है।

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Published
2023-06-20
How to Cite
विशेनच. द. स., & मिश्रड. अ. (2023). अदम गोंडवी की रचनाओं में स्त्री चेतना. Humanities and Development, 18(1), 103-106. https://doi.org/10.61410/had.v18i1.123