वैश्विक परिदृश्य में विवाह रूपी संस्था में परिवर्तन एवं इसका भविष्य
Abstract
विवाह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो विश्व के प्रत्येक भाग में पायी जाती है। प्रत्येक समाज में चाहे वह आदिम हो अथवा आधुनिक ग्रामीण हो या नगरीय विवाह अनिवार्य रूप से पाया जाता है। यह वह संस्था है जिसके द्वारा स्त्री व पुरूष का यौन-सम्बन्ध समाज द्वारा मान्य तरीकों से व्यवस्थित होता है तथा परिवार को बसाने और बच्चों को जन्म देने व उनका लालन पालन करने का उद्देश्य पूरा किया जाता है। प्रायः विभिन्न समाजों में विवाह के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं लेकिन कुछ उद्देश्य ऐसे होते हैं जो सभी समाजों में विद्यमान रहते हैं और सर्वमान्य होते हैं, जैसे यौन इच्छा की पूर्ति सन्तानोत्पत्ति और बच्चों का पालन-पोषण इत्यादि। विवाह संस्था द्वारा ही व्यक्ति परिवार की स्थापना करके संस्कृति संरक्षण का कार्य करता है। लेकिन वर्तमान समय में औद्योगीकरण, नगरीकरण विज्ञान एवं संचार क्रान्ति तथा आधुनिक शिक्षा एवं मूल्य व्यवस्था ने विवाह रूपी संस्था में व्यापक परिवर्तन ला दिया है। आज इसकी प्रकृति, आकार, स्वरूप और उद्देश्यों में तीव्र गति से परिवर्तन होता जा रहा है। अनेक समाजशास्त्रीय शोधों ने इस भय को पुष्ट किया है कि एक संस्था के रूप में विवाह का भविष्य खतरे में है। तो ये कहना हमें लगता है कि जल्दबाजी होगी क्योंकि अनेक समाजशास्त्रीय शोधों ने यह निष्कर्ष दिया है कि जिस प्रकार समय परिवर्तन शील है और प्रत्येक संस्थायें भी परिवर्तन के बहाव में है उसी प्रकार विवाह रूपी संस्था भी परिवर्तन शील है अर्थात उसके कुछ पक्षों में जरूर परिवर्तन हो रहा है लेकिन जब तक विवाह का उद्देश्य प्रजनन, बच्चों का पालन पोषण और परिवार निर्माण का आधार रहेगा तब तक यह संस्था अपने बदले स्वरूप में हमेशा विद्यमान रहेगी।