‘‘संस्कृत वाङ्मय में लोक कल्याण की व्यापक भावना’’

  • राम लाल विश्वकर्मा (असि0 प्रोफेसर, संस्कृत-विभाग) का0सु0 साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अयोध्या

Abstract

संस्कृत वि‛व की प्राचीनतम भाषा है यह चिर नूतन भाषा हैं क्योंकि सर्वप्राचीन होने पर भी आज किसी भी भाषा से अधिक युवती है। भारतवर्ष का अधिकांश साहित्य संस्कृत भाषा में ही निबद्ध है। संस्कृत वाङ्मय भारतीय संस्कृति का मूल स्रोत है। इसमें मानव कल्याण की भावना कूट-कूट कर भरी है। संस्कृत-साहित्य ‘सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कशिचद् दुःखभाग्भवेत्।।1 तथा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’2 का डिम-डिम घोष करते हुए समाज कल्याण की अवधारणा को स्पष्ट करता है।

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Published
2023-06-20
How to Cite
विश्वकर्मार. ल. (2023). ‘‘संस्कृत वाङ्मय में लोक कल्याण की व्यापक भावना’’. Humanities and Development, 18(1), 55-57. https://doi.org/10.61410/had.v18i1.111