भारतीय इतिहास लेखन की विभिन्न अवधारणाओं का समीक्षात्मक अध्ययन
Abstract
भारत में विदेशियों की शासन सत्ता स्थापित हो जाने के पश्चात् अठारहवीं सदी में कई यूरोपीय विद्वानों की रूचि भारतीय इतिहास एवं संस्श्ति की ओर दिखाई देती है इनमें विलियम जोन्स, मैक्समूलर, जेम्स प्रिसेप, कोलबु्रक प्रमुख है। भारत में साम्राज्यवादी इतिहास लेखन के श्ष्टिकोण के पीछे ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा एवं स्थायित्व की भावना प्रबल रूप से विद्यमान थी। औपनिवेशिक साम्राज्यवादी विचारधारा के इतिहासकारो में जेम्स मिल, एल्फिंसटन, आर. कूपलैण्ड, पर्सिवल स्पीयर आदि विद्वानों के नाम प्रमुखता से लिये जाते हैं। साम्राज्यवादी इतिहास लेखन के प्रतिक्रिया स्वरूप भारतीय विद्वानों ने राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का श्ष्टिकोण अपनाया। ब्रिटिश शासनकाल में इतिहास की राष्ट्रीय विचारधारा का प्रयोग अम्बिका चरण मजूमदार (ए.सी. मजूमदार), पट्टाभि सीतारमैया एवं पंजाब केशरी लाला लाजपत राय, राधा कुमुद मुखर्जी, के०पी० जायसवाल आदि ने किया। कालान्तर में इलाहाबाद मत ने राष्ट्रीय इतिहास लेखन को और विकसित किया। राष्ट्रीय इतिहास लेखन के इलाहाबाद मत के प्रमुख राष्ट्रीय इतिहासकरों में ताराचन्द, आर.पी. त्रिपाठी, बेनी प्रसाद एवं डॉ0 बनारसी प्रसाद सक्सेना के नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं। इटली के प्रमुख विचारक अन्तोनियो ग्राम्शी की प्रेरणा से रणजीत गुहा आदि विद्वानों ने इतिहास लेखन का उपाश्रयी दृष्टिकोण विकसित किया और इसके बाद इतिहास उत्तर आधुनिक दौर में प्रवेश कर गया। मानवीय रुचि इतिहास पर श्ष्टि डाली जाये तो हमें विदित होगा कि, ‘लेखन से पूर्व भाषा का जन्म हुआ था तथा उससे पहले बोली का पदार्पण हुआ है।’