प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था में आधुनिक चुनौतियाँ: शिक्षा के सार्वभौमिकरण के संदर्भ में एक अध्ययन
Abstract
वर्तमान प्राचीन समाज में सभी नागरिक शिक्षा प्राप्त नागरिक हों इसके लिए समाज और सामाजिक व्यवस्थाओं ने शिक्षा के विकास के लिए काफी प्रयास किए। वर्तमान में भी देश ने शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए सरकार द्वारा सभी के लिए शिक्षा का लक्ष्य रखा गया है शिक्षा की अनिवार्यता के दृष्किोण से शिक्षा का सार्वभौमिकरण किया गया। देश में सार्वभौमिक शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई है, परन्तु सार्वभौमिक शिक्षा ने गुण को क्षीण कर दिया है। वर्तमान समय में वि‛व में वैज्ञानिक एवं प्राविधिक विकास की गति अत्यधिक तीव्र है। परन्तु भारत देश में इस दिशा में बहुत काम करने की आव‛यकता है। स्वतंत्रता के पश्चात् हमारा देश वैज्ञानिक विकसित हेतु कई कार्य हुए हैं। परन्तु अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। वैज्ञानिक एवं प्राविधिक विकास की दृष्टि से अभी तक अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान जैसे देशों के मुकाबले एक पिछड़े राष्ट्र हैं। अपनी इस कमी को पूरा करना हमारी शिक्षा का उद्देश्य है। हमारी शिक्षा-व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हमारी प्राचीन से लेकर आधुनिक शिक्षा-पद्धति कमोवेश साहित्यिक रही है। प्रयोगात्मक कार्यों और कौषलताओं को महत्व कम दिया गया। पढ़-लिखकर भी छात्र बेरोजगार रहता है। शिक्षा हमारी उत्पादन क्षमता को नहीं बढ़ाती। बेरोजगारी की समस्या देश के सम्मुख विकट रूप धारण किये हुये हैं। इस समस्या को जहाँ और तरीकों से हल करना है, वहाँ इसका समाधान शिक्षा-पद्धति में मौलिक सुधार लाकर भी करना होगा। शिक्षा में कार्य अनुभव, व्यवसायिक आधार एवं उत्पादक क्षमता में भी यही माँग है। इसलिये हमारी शिक्षा का उद्देश्य है कि ऐसी शिक्षा 2 व्यवस्था का विकास करना जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिये उपर्युक्त कार्य जुटाना। हमें अपने शैक्षिकसाधनों का सर्वाधिक उपयोग करना है। परन्तु शिक्षा में व्यर्थता व गतिरोध जैसी समस्याएँ हमारे साधनों का अपव्यय सिद्ध हो रही है। अतएव प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था का अनुशीलन कर आधुनिक शिक्षा की इन कमियों में सुधार की आवष्यकता है। मुख्य शब्द : शिक्षा व्यवस्था, चुनौतियाँ, सार्वभौमिकरण।